चना की खेती (Chana ki Kheti)

चना की खेती (Chana ki Kheti): पूरी जानकारी, तरीके और मुनाफा
चना (Chana) भारत की सबसे प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है। इसे रबी मौसम की मुख्य फसल माना जाता है। चना प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का बेहतरीन स्रोत है, जो दाल, बेसन, सत्तू और स्नैक्स के रूप में हर घर की ज़रूरत है। किसान भाइयों के लिए चना की खेती कम लागत और अधिक मुनाफा देने वाली खेती मानी जाती है।
इस लेख में हम आपको चना की खेती की जानकारी (Chana ki Kheti ki Jankari) सरल भाषा में देंगे—जैसे खेत की तैयारी, बीज चयन, बुवाई का समय, सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, रोग और कीट नियंत्रण, कटाई, लागत और मुनाफा।
1. खेत की तैयारी (खेत की मिट्टी कैसी हो?)
- चना की खेती बलुई दोमट और मध्यम काली मिट्टी में अच्छी होती है।
- मिट्टी का pH 6–7.5 होना सबसे अच्छा है।
- खेत में पानी भराव नहीं होना चाहिए, वरना पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
- खेत की गहरी जुताई बरसात के बाद कर लें ताकि नमी संरक्षित हो।
- बुवाई से पहले 2–3 बार हल्की जुताई और पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी और समतल करें।
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2. बीज उपचार और चयन
चने की फसल में उच्च पैदावार और रोग-मुक्त पौधे पाने के लिए बीज का सही चयन और उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है। सही बीज और उसका उपचार न केवल अंकुरण दर बढ़ाता है बल्कि फसल को रोगों और कीटों से बचाने में मदद करता है।
2.1. बीज का चयन (Seed Selection)
- उन्नत प्रजातियाँ चुनें: किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी और सिंचाई सुविधा के अनुसार प्रमाणित और उन्नत प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए।
- देशी बनाम प्रमाणित बीज: अधिक उपज और कीट-रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए हमेशा प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
- बीज अंकुरण क्षमता जांचें:
- 100 बीजों को 8 घंटे पानी में भिगोएं।
- गीले कपड़े या बोरे में ढककर कमरे के तापमान पर रखें।
- 4-5 दिन बाद अंकुरित बीजों की संख्या गिनें।
- अगर 90% या अधिक बीज अंकुरित हैं, तो बीज बुआई के लिए उपयुक्त हैं।
2.2. बीज उपचार (Seed Treatment)
बीजों को रोग-मुक्त बनाने के लिए नीचे दिए गए उपचार अपनाएं:
- बीजशोधन (Seed Disinfection)
- थीरम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडरमा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज।
- विकल्प: थीरम 2.5 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज।
- बीज शोधन से फसल बीजजनित रोगों से सुरक्षित रहती है।
- राइजोबियम कल्चर उपचार (Rhizobium Culture Treatment)
- चना के बीज पर मेजोराइजोबियम साइसेरी कल्चर लगाना चाहिए।
- 200 ग्राम कल्चर 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है।
- बीज और कल्चर को अच्छी तरह मिलाएँ ताकि सभी बीज कल्चर से कोट हो जाएँ।
- उपचारित बीज को छाया में सुखाएं; सीधे धूप में न रखें।
- बुवाई दोपहर या अगले दिन सुबह करनी चाहिए।
2.3. बीज दर (Seed Rate)
- छोटे दाने वाली प्रजाति: 75–80 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
- बड़े दाने वाली प्रजाति: 90–100 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
2.4. सावधानी
- बीज को धूप में सुखाने से बचें।
- बीज उपचार केवल बुआई से पहले ही करें।
- उपचारित बीज को अधिक समय तक न रखें, ताजा उपचारित बीज ही अच्छे अंकुरण के लिए सही हैं।
3. रोपण: बुवाई का सही समय व तरीका
चना की खेती (chana ki kheti) में बुवाई का सही समय और तरीका अच्छी पैदावार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि किसान समय पर और उचित गहराई व दूरी के साथ बुवाई करें तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। नीचे इस विषय में विस्तार से जानकारी दी जा रही है:
3.1. बुवाई का सही समय
- असिंचित (बारानी) खेती के लिए:
चने की बुवाई अक्टूबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक करनी चाहिए। यह समय मानसून से संरक्षित मिट्टी की नमी का लाभ लेने के लिए उपयुक्त होता है। - सिंचित खेती के लिए:
यदि खेत में पानी की सुविधा है तो बुवाई नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है। - पछैती बुवाई के लिए:
देर से बुवाई करना पड़े तो दिसम्बर के पहले सप्ताह तक बुवाई संभव है। लेकिन देर से बुवाई से फसल की पकने की अवधि और उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
3.2. बुवाई की गहराई
- हल्की और असिंचित जमीन में बुवाई 6-8 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए।
- सिंचित और काबुली चने की खेती के लिए बुवाई की गहराई 45 से.मी. तक रखी जा सकती है।
3.3. बीजों के बीच की दूरी
- असिंचित और पछैती बुवाई में कूंड से कूंड की दूरी 30 से.मी. रखी जाती है।
- सिंचित खेतों में और काबुली चना की बुवाई में दूरी 45 से.मी. रखी जाती है।
3.4. बुवाई का तरीका
- बुवाई हल के पीछे बने कूंडों में की जाती है।
- बीजों को उचित मात्रा में डालें:
- छोटे दाने वाली प्रजाति: 75-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर
- बड़े दाने वाली प्रजाति: 90-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर
- बीजों की अंकुरण क्षमता पहले जाँच लें। 100 बीजों को 8 घंटे पानी में भिगोकर देखें। यदि 90% से अधिक अंकुरित हो जाएं तो बीज बोने के लिए उपयुक्त हैं।
3.5. बीज उपचार और बीजोपचार
- बीजों को बीजजनित रोग से बचाने के लिए थीरम 2.5 ग्राम + कार्बोंडाजिम 2 ग्राम प्रति किग्रा. की दर से उपचारित करें।
- राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करें ताकि पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़े और फसल स्वास्थ्यवर्धक रहे।
4. सिंचाई: कितनी बार और कैसे करें?
चना की खेती में सिंचाई की सही समय पर और सही मात्रा में करना फसल की पैदावार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊपर दिए गए कंटेंट के अनुसार इसे इस प्रकार समझा जा सकता है:
- सिंचाई का समय
- चना एक दलहनी फसल है, इसलिए इसकी आवश्यकता अधिक पानी की नहीं होती।
- पहली सिंचाई शाखाएँ बनने के समय यानी बुवाई के 45–60 दिन बाद करें।
- दूसरी सिंचाई फली बनने के समय दी जाती है, ताकि अधिक उत्पादन प्राप्त हो।
- फूल आने की सक्रिय अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस समय पानी देने से फूल झड़ सकते हैं और पौधों की अनावश्यक वृद्धि होती है।
- सिंचाई की मात्रा
- रबी दलहन फसल में हल्की सिंचाई (लगभग 4–5 सेमी.) पर्याप्त होती है।
- अधिक पानी देने से पौधों में वानस्पतिक वृद्धि बढ़ जाती है, जिससे दाने की उपज कम हो सकती है।
- सिंचाई की विधि
- अगर पानी की सुविधा उपलब्ध है तो फली बनने के समय एक अतिरिक्त सिंचाई अवश्य करें।
- सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर (बौछारी) विधि अपनाना लाभकारी होता है।
- असिंचित या बारानी क्षेत्र
- असिंचित क्षेत्रों में चना मुख्य रूप से मानसून में संरक्षित नमी पर उगता है।
- यदि पहले ही पर्याप्त वर्षा हो चुकी है या खेत में मावठा गिर चुका है, तो अतिरिक्त सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं है।
- विशेष सलाह
- काली मिट्टी वाले क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई करने से चने का पौधा ‘गर्रा’ सकता है और फूल व फल पर विपरीत असर पड़ सकता है।
- खेत की नमी और मौसम के अनुसार सिंचाई का निर्णय लें।
5. उर्वरक प्रबंधन
चना की फसल में सही उर्वरक प्रबंधन पैदावार को बढ़ाने और पौधों की सेहत बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। चना दलहनी फसल है और अपनी प्राकृतिक नाइट्रोजन क्षमता के कारण कुछ हद तक खुद ही नाइट्रोजन प्राप्त कर सकता है। फिर भी, उर्वरक प्रबंधन के सही तरीके अपनाने से दाने का आकार, संख्या और कुल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
5.1. मुख्य उर्वरक और उनकी मात्रा:
प्रति हेक्टेयर चने की फसल के लिए उर्वरक का प्रयोग निम्नानुसार किया जाता है:
- नाइट्रोजन (N): 20 किलो/हेक्टेयर
- फास्फोरस (P₂O₅): 60 किलो/हेक्टेयर
- पोटाश (K₂O): 20 किलो/हेक्टेयर
- गंधक (Sulphur): 20 किलो/हेक्टेयर
नोट: उपरोक्त मात्रा सामान्य मानक है। मिट्टी की उर्वरता और क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार कृषि विशेषज्ञ की सलाह से समायोजन किया जा सकता है।
5.2. बुवाई से पहले उर्वरक का प्रयोग:
- सभी उर्वरक को कूंडो (furrows) में बुवाई के समय डालना चाहिए।
- इस तरीके से बीज और उर्वरक की निकटता संतुलित होती है और पौधों के लिए पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध रहते हैं।
5.3. असिंचित और देर से बुआई की दशा में:
- अगर खेत में सिंचाई की सुविधा कम है या बुवाई देर से की गई है, तो 2% यूरिया का घोल फूल आने के समय छिड़काव करें।
- इससे पौधों की फली में वृद्धि होती है और दाने का आकार बेहतर होता है।
5.4. विशेष टिप्स:
- चने की फसल में फुल बनने की अवस्था में अधिक नाइट्रोजन का उपयोग न करें, क्योंकि इससे वानस्पतिक वृद्धि अत्यधिक हो सकती है और फूल झड़ सकते हैं।
- हमेशा सिंचित क्षेत्र और असिंचित क्षेत्र में उर्वरक की मात्रा और समय का ध्यान रखें।
6. कीट और रोग नियंत्रण
प्रमुख कीट
- कटुआ कीट – पौधों को काट देता है।
👉 नियंत्रण: खेत में पक्षी बैठने के लिए 50–60 बर्ड पर्चर लगाएं। - अर्द्धकुंडलीकार कीट (Semilooper) – पत्तियां और फलियां खाता है।
👉 नियंत्रण: जैविक BT स्प्रे का उपयोग करें। - फली बेधक कीट – फलियों को खोखला कर देता है।
👉 नियंत्रण: हेलिकोवर्पा NPV (250LE/हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
प्रमुख रोग
- जड़ सड़न (Root Rot)
- उकठा रोग (Wilt)
- एस्कोकाइटा पत्ती धब्बा
👉 बचाव के लिए बीज उपचार + फसल चक्र + रोग प्रतिरोधी किस्में अपनाएं।
7. खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Chana Ki Kheti)
चना की फसल में उपज बढ़ाने और पौधों को स्वस्थ रखने के लिए खरपतवार नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। यदि खेत में समय पर खरपतवार का नियंत्रण नहीं किया गया, तो ये चने के पौधों से पोषक तत्व, पानी और रोशनी छीन लेते हैं और उत्पादन घटा सकते हैं।
प्रमुख खरपतवार:
चना की फसल में सामान्य रूप से पाए जाने वाले प्रमुख खरपतवार निम्नलिखित हैं:
- बथुआ
- सेन्जी
- कृष्णनील
- हिरनखुरी
- चटरी-मटरी
- अकरा-अकरी
- जंगली गाजर
- गजरी
- प्याजी
- खरतुआ
- सत्यानाशी
खरपतवार नियंत्रण के उपाय:
- रसायनिक नियंत्रण (Herbicides):
- फ्लूक्लोरैलीन 45% ई.सी.: 2.2 लीटर प्रति हेक्टेयर, लगभग 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर, बुआई से तुरंत पहले मिट्टी में मिलाएं।
- पेंडीमेथलीन 30% ई.सी.: 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर, बुआई के 2-3 दिन के भीतर समान रूप से छिडकाव करें।
- एलाक्लोर 50% ई.सी.: 4.0 लीटर प्रति हेक्टेयर, पानी में घोल बनाकर बुआई के 2-3 दिन के भीतर उपयोग करें।
- क्यूजालोफोप-इथाइल 5% ई.सी.: 2.0 लीटर प्रति हेक्टेयर, 500 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 20-30 दिनों बाद करें, जिससे सकरी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रित हों।
- मैनुअल / शारीरिक नियंत्रण:
यदि रसायनों का उपयोग नहीं किया गया है, तो खुरपी से निराई करें।- बुआई के 2-3 दिनों के भीतर और 20-30 दिनों बाद निराई करना सबसे प्रभावी है।
- यह फसल में खरपतवार को रोकने और मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करता है।
- सहफसली खेती (Intercropping) का उपयोग:
- चने के साथ अलसी, सरसों या धनिया की सहफसली खेती करने से भी खरपतवार की वृद्धि कम होती है।
ध्यान देने योग्य बातें:
- बुआई के तुरंत बाद रासायनिक छिडकाव करना चाहिए।
- एक ही कीटनाशी या खरपतवारनाशी को बार-बार प्रयोग न करें।
- समय पर निराई और रासायनिक छिडकाव करने से फसल सुरक्षित रहती है और उत्पादन बढ़ता है।
8. कटाई और भंडारण (Chana Ki Katai Aur Bhandaran)
चना की खेती में कटाई और भंडारण फसल की गुणवत्ता और लाभ के लिए बहुत महत्वपूर्ण चरण है। सही समय और तरीके से कटाई न करने पर फसल का नुकसान हो सकता है। यहाँ हम आपको चरणबद्ध तरीके से जानकारी देंगे कि चना की कटाई कैसे करें और उसे सुरक्षित कैसे भंडारित करें।
8.1. कटाई का सही समय
- चना तब काटना चाहिए जब फली पूरी तरह से पक जाए और पौधों की पत्तियाँ सूख जाएँ।
- आम तौर पर यह समय बुआई के 100-120 दिन बाद होता है, यह किस्म और मिट्टी की नमी पर निर्भर करता है।
- यदि फसल अधिक नमी वाली मिट्टी में उगाई गई हो, तो ज्यादा समय न बढ़ाएँ, क्योंकि इससे दाने फट सकते हैं।
8.2. कटाई की विधि
- हाथ से कटाई: छोटे खेतों के लिए उपयुक्त, फसल को धीरे-धीरे काटकर गट्ठों में बाँधें।
- मशीन से कटाई: बड़े क्षेत्र में, हार्वेस्टर मशीन का उपयोग किया जा सकता है, जिससे समय और श्रम की बचत होती है।
- कटाई के बाद पौधों को कुछ दिनों के लिए खेत में सुखाएँ, ताकि फली में मौजूद नमी बाहर निकल जाए।
8.3. फसल सुखाने की प्रक्रिया
- फसल को सुरक्षित और साफ जगह पर फैलाकर 7-10 दिन तक धूप में सुखाएँ।
- ध्यान रखें कि बारिश न हो, क्योंकि इससे दाने खराब हो सकते हैं।
- दाने अच्छी तरह से सूखने पर ही संग्रहण के लिए आगे बढ़ें।
8.4. भंडारण (Storage)
- सूखे दानों को साफ, सूखी और हवादार गोदाम या संदूक में रखें।
- भंडारण से पहले कीट और रोग नियंत्रण आवश्यक है।
- आप नीम का तेल या कीटनाशक का हल्का छिड़काव कर सकते हैं।
- चना को प्लास्टिक बैग, जूट या कन्टेनर में सुरक्षित रूप से रख सकते हैं।
- भंडारण के दौरान नियमित निरीक्षण करें, ताकि नमी और कीट से नुकसान न हो।
8.5. कटाई और भंडारण के फायदे
- सही समय पर कटाई और उचित भंडारण से दाने सुरक्षित रहते हैं और गुणवत्ता बनी रहती है।
- इससे बाजार में अधिक कीमत और बेहतर मुनाफा सुनिश्चित होता है।
- खराब होने की संभावना कम हो जाती है और लम्बे समय तक चना इस्तेमाल योग्य रहता है।
9. चना की खेती में लाभ और लागत
- 1 हेक्टेयर चना की खेती पर औसत लागत: ₹25,000 – ₹30,000
- औसत उत्पादन: 18–25 क्विंटल/हेक्टेयर
- बाजार भाव (2025): ₹5,500–₹7,000 प्रति क्विंटल
- शुद्ध मुनाफा: ₹60,000 – ₹1,00,000 प्रति हेक्टेयर
- खासकर काबुली और डॉलर चना ज्यादा मुनाफा देते हैं।
👉 विस्तार से पढ़ें: SubsistenceFarming.in पर चना की खेती
10. चना की खेती कैसे करें – सबसे महत्वपूर्ण FAQs
Q1. चना की खेती कब करें?
👉 रबी सीजन में, अक्टूबर–नवंबर सबसे उपयुक्त समय है।
Q2. चना की खेती कैसे की जाती है (Chana ki Kheti Kaise Ki Jaati Hai)?
👉 खेत की गहरी जुताई, बीज उपचार, सही समय पर बुवाई और सिंचाई से।
Q3. चना की कौन-कौन सी किस्में अच्छी हैं?
👉 पूसा-256, अवरोधी, पूसा-1003 (काबुली), बी.जी.-3022 (डॉलर चना)।
Q4. चना में कितनी सिंचाई करनी चाहिए?
👉 सामान्यतः 2 सिंचाई पर्याप्त होती हैं।
Q5. क्या काबुली चना (Kabuli Chana) ज़्यादा लाभदायक है?
👉 हाँ, इसका दाना बड़ा और बाजार भाव अधिक होता है।
Q6. डॉलर चना की खेती (Dollar Chana ki Kheti) क्यों खास है?
👉 अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग और ऊँचे दाम मिलने के कारण।
Q7. चना में कौन से रोग सबसे ज्यादा लगते हैं?
👉 उकठा, जड़ सड़न और पत्ती धब्बा रोग।
Q8. चना में खरपतवार कैसे नियंत्रित करें?
👉 निराई-गुड़ाई और पेंडीमेथालिन का प्रयोग करें।
Q9. चना की पैदावार कितनी होती है?
👉 18–30 क्विंटल/हेक्टेयर तक।
Q10. व्हाइट चना (White Chana ki Kheti) कहाँ होता है?
👉 पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश में इसकी खेती अधिक होती है।
Q11. चना की खेती में कितनी लागत आती है?
👉 लगभग 25–30 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर।
Q12. चना की खेती से कितना मुनाफा हो सकता है?
👉 60 हजार से 1 लाख रुपये तक शुद्ध लाभ।
निष्कर्ष
चना की खेती (Chana ki Kheti) किसानों के लिए कम लागत और अधिक मुनाफा देने वाली फसल है। चाहे देशी चना हो, काबुली चना, डॉलर चना या व्हाइट चना—यदि खेत की तैयारी, बीज चयन, सिंचाई और रोग नियंत्रण पर ध्यान दिया जाए, तो किसान भाई लाखों रुपये तक मुनाफा कमा सकते हैं।
👉 चना की खेती की और सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए कृषि मंत्रालय की वेबसाइट देखें।