मसूर की खेती (Masoor ki Kheti)

मसूर की खेती (Masoor ki Kheti): एक संपूर्ण मार्गदर्शिका
मसूर की खेती (Masoor ki Kheti) भारत में रबी सीजन की प्रमुख दालों में से एक है। यह न केवल किसानों के लिए लाभकारी है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती है। भारत में मसूर की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और झारखंड में बड़े पैमाने पर की जाती है।
यह लेख आपको बताएगा कि मसूर की खेती कैसे करे, मसूर की खेती का सही समय, मसूर की खेती में कौन सा खाद डालें, सिंचाई, बीज चयन, कीट व रोग नियंत्रण और लाभ से संबंधित हर जानकारी।
1. खेत की तैयारी (खेत की मिट्टी कैसी हो?)
1.1 भूमि का चयन
मसूर की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। हल्की क्षारीय या थोड़ी अम्लीय भूमि (pH 6 से 7.5) बेहतर परिणाम देती है।
1.2 मिट्टी की जांच
खेती से पहले मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है। इससे यह पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्वों की कमी है।
1.3 गहरी जुताई
एक बार गहरी जुताई (पलटने वाले हल से) और दो से तीन बार साधारण जुताई करनी चाहिए।
1.4 समतलीकरण
खेत को समतल करना जरूरी है ताकि पानी का जमाव न हो और फसल समान रूप से विकसित हो।
1.5 जैविक खाद का प्रयोग
प्रति एकड़ 4–5 टन गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट डालना लाभकारी है।
1.6 नमी प्रबंधन
मसूर की फसल हल्की नमी वाली मिट्टी में अच्छी होती है। अत्यधिक नमी से पौधों को नुकसान होता है।
1.7 क्यारियों का निर्माण
क्यारियों और नालियों का निर्माण करने से सिंचाई और जल निकासी सही रहती है।
2. बीज उपचार और चयन
2.1 उन्नत किस्म का चयन
उन्नत किस्में जैसे – Pusa Vaibhav, Pusa-372, DPL-15, K-75, IPL-406 किसानों के बीच लोकप्रिय हैं।
2.2 रोगमुक्त बीज का चयन
बीज हमेशा स्वच्छ और रोगमुक्त होना चाहिए।
2.3 बीज शोधन
बीज को 0.2% Bavistin या Thiram से उपचारित करना चाहिए।
2.4 जैविक उपचार
Rhizobium और PSB कल्चर से बीज को उपचारित करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है।
2.5 भंडारण से पूर्व निरीक्षण
बीज को साफ और सूखे स्थान पर संग्रहित करना चाहिए।
3. रोपण: बुवाई का सही समय व तरीका
3.1 बुवाई का सही मौसम
मसूर की खेती का सही समय अक्टूबर के अंत से नवंबर तक होता है।
3.2 बीज की मात्रा
प्रति एकड़ 30–35 किलोग्राम बीज पर्याप्त है।
3.3 बुवाई की गहराई
बीज को 3–4 सेमी गहराई पर बोना चाहिए।
3.4 पौधों के बीच दूरी
पौधों के बीच 8–10 सेमी और कतार से कतार की दूरी 20–25 सेमी रखें।
3.5 मेड़-नाली या क्यारी विधि
बारानी क्षेत्रों में मेड़-नाली विधि और सिंचित क्षेत्रों में क्यारी विधि सर्वोत्तम है।
4. सिंचाई: कितनी बार और कैसे करें?
- प्रारंभिक सिंचाई – बुवाई के 20–25 दिन बाद।
- फूल आने पर सिंचाई – सबसे आवश्यक चरण।
- फली बनते समय सिंचाई – अंतिम सिंचाई यहीं तक करनी चाहिए।
- ड्रिप या फव्वारा विधि – पानी की बचत के लिए बेहतर है।
- अधिक सिंचाई से जड़ गलन और पौधों की कमजोरी हो सकती है।
5. उर्वरक प्रबंधन (मसूर की खेती में कौन सा खाद डालें)
- बेसल डोज – प्रति एकड़ 15 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस और 20 किलो पोटाश।
- जैविक खाद – गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग।
- सूक्ष्म पोषक तत्व – जिंक और गंधक की आपूर्ति से उत्पादन बढ़ता है।
6. कीट और रोग नियंत्रण
6.1 सामान्य कीट पहचान
- तना छेदक
- चूर्णी फफूंद
- पत्ती धब्बा रोग
6.2 जैविक नियंत्रण
नीम तेल का छिड़काव लाभकारी है।
6.3 रासायनिक नियंत्रण
जरूरत पड़ने पर Carbendazim या Mancozeb का छिड़काव करें।
6.4 फसल निरीक्षण
10–12 दिन के अंतराल पर फसल की निगरानी करनी चाहिए।
7. खरपतवार नियंत्रण
- बुवाई के 25–30 दिन बाद पहली निराई।
- दूसरी निराई 45 दिन बाद।
- हाथ से या कुदाल से निराई करें।
- आवश्यकता पड़ने पर Pendimethalin का छिड़काव करें।
8. कटाई और भंडारण
- कटाई का सही समय – जब 80–90% फलियां पक जाएं और पत्ते झड़ने लगें।
- खुदाई की विधि – दरांती या हाथ से पौधे उखाड़े जाते हैं।
- सुखाने की प्रक्रिया – कटाई के बाद 3–4 दिन धूप में सुखाना जरूरी है।
- भंडारण – साफ व सूखे गोदाम में करें।
9. मसूर की खेती में लाभ और लागत (प्रति एकड़)
विवरण | मात्रा/लागत |
---|---|
कुल लागत | ₹ 15,000 – ₹ 18,000 |
उत्पादन | 7–9 क्विंटल |
बाजार मूल्य (₹ 6,000 प्रति क्विंटल) | ₹ 42,000 – ₹ 54,000 |
शुद्ध लाभ | ₹ 25,000 – ₹ 35,000 |
लाभ बढ़ाने के उपाय | उन्नत किस्म, समय पर सिंचाई, जैविक खाद |
10. मसूर की खेती से जुड़े शीर्ष प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: मसूर की खेती कैसे करे?
उत्तर: खेत की तैयारी, उन्नत किस्म का चयन, उचित खाद, सिंचाई और रोग नियंत्रण का ध्यान रखकर आसानी से मसूर की खेती की जा सकती है।
प्रश्न 2: मसूर की खेती का सही समय कब है?
उत्तर: अक्टूबर के अंत से नवंबर तक मसूर की बुवाई करना सबसे उचित है।
प्रश्न 3: मसूर की खेती में कौन सा खाद डालें?
उत्तर: गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और रासायनिक खादों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उचित अनुपात डालना चाहिए।
प्रश्न 4: मसूर की उपज कितनी होती है?
उत्तर: एक एकड़ से औसतन 7–9 क्विंटल मसूर का उत्पादन होता है।
प्रश्न 5: मसूर की खेती में कितनी सिंचाई करनी चाहिए?
उत्तर: 2–3 सिंचाई पर्याप्त है, विशेषकर फूल और फली बनने के समय।
प्रश्न 6: मसूर की खेती में लागत कितनी आती है?
उत्तर: प्रति एकड़ लगभग ₹15,000 – ₹18,000 तक की लागत आती है।
प्रश्न 7: मसूर की खेती में शुद्ध लाभ कितना है?
उत्तर: एक एकड़ से ₹25,000 – ₹35,000 का लाभ मिलता है।
प्रश्न 8: मसूर की उन्नत किस्में कौन सी हैं?
उत्तर: Pusa Vaibhav, K-75, IPL-406 आदि प्रमुख किस्में हैं।
प्रश्न 9: मसूर की खेती में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें?
उत्तर: नीम तेल, Carbendazim और समय पर फसल निरीक्षण करके कीट और रोगों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
प्रश्न 10: मसूर की खेती के लिए किस मिट्टी की जरूरत होती है?
उत्तर: हल्की दोमट मिट्टी (pH 6–7.5) सबसे अच्छी मानी जाती है।
प्रश्न 11: मसूर की बुवाई की दूरी कितनी रखनी चाहिए?
उत्तर: पौधों के बीच 8–10 सेमी और कतार से कतार की दूरी 20–25 सेमी होनी चाहिए।
प्रश्न 12: मसूर की खेती में लाभ कैसे बढ़ाएं?
उत्तर: समय पर सिंचाई, रोगमुक्त बीज, जैविक खाद का प्रयोग और उन्नत किस्में अपनाकर लाभ बढ़ाया जा सकता है।
निष्कर्ष
मसूर की खेती (Masoor ki Kheti) किसानों के लिए लाभकारी है और मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है। अगर किसान सही समय पर बुवाई करें, खाद और सिंचाई का संतुलन रखें तो अधिक उत्पादन और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
📌 अधिक जानकारी के लिए देखें: भारतीय कृषि पोर्टल – agriculture.vikaspedia.in
📌 आंतरिक लिंक: Subsistence Farming