लौकी की खेती (Lauki ki Kheti)

लौकी की खेती (Lauki ki Kheti)

लौकी की खेती (Lauki ki Kheti) – पूरी जानकारी किसानों के लिए

भारत में लौकी (Bottle Gourd) को सब्ज़ियों की प्रमुख फसलों में गिना जाता है। यह पौष्टिक सब्ज़ी गर्मियों और बरसात में किसानों को अच्छा उत्पादन देती है। सही समय पर हाइब्रिड लौकी की खेती करने से प्रति एकड़ किसान 40 से 100 क्विंटल तक उपज ले सकते हैं। इस लेख में हम आपको लौकी की खेती की जानकारी देंगे – खेत की तैयारी से लेकर बुवाई, उर्वरक, सिंचाई, रोग नियंत्रण, लागत व लाभ तक।

1. खेत की तैयारी (खेत की मिट्टी कैसी हो?)

लौकी की खेती में खेत की तैयारी सबसे पहला और अहम कदम है। यदि खेत की मिट्टी उपयुक्त नहीं होगी तो अच्छी किस्म का बीज और सही देखभाल करने के बाद भी उत्पादन कम मिलेगा। इसलिए खेती शुरू करने से पहले मिट्टी और खेत की उचित तैयारी करना जरूरी है।

1.1 भूमि का चयन

  • लौकी की खेती के लिए दोमट मिट्टी (Loamy Soil) सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
  • मिट्टी ऐसी होनी चाहिए जिसमें जल धारण क्षमता (water holding capacity) अच्छी हो और पानी का निकास भी ठीक से हो सके।
  • भारी चिकनी मिट्टी में जलभराव की समस्या हो सकती है जिससे जड़ सड़न (Root Rot) का खतरा रहता है।
  • रेतीली मिट्टी में भी खेती हो सकती है लेकिन उसमें पर्याप्त जैविक खाद मिलाना जरूरी है।

1.2 मिट्टी की जांच

  • खेत की मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए। यह लौकी की वृद्धि और फलन के लिए सर्वोत्तम है।
  • खेती शुरू करने से पहले किसान को मिट्टी की जांच (Soil Testing) अवश्य करवानी चाहिए।
  • मिट्टी जांच से पता चलता है कि उसमें कौन से पोषक तत्व (Nitrogen, Phosphorus, Potash, Zinc, Boron आदि) की कमी है।
  • जांच रिपोर्ट के आधार पर ही उर्वरक और जैविक खाद की मात्रा तय करनी चाहिए।

1.3 गहरी जुताई

  • गर्मियों में खेत की 2–3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए।
  • गहरी जुताई से पुराने कीट, रोगाणु और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
  • इससे मिट्टी का हवा और धूप से संपर्क बढ़ता है और मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है।
  • जुताई के दौरान खेत में गोबर की सड़ी खाद भी डाली जा सकती है।

1.4 समतलीकरण

  • जुताई के बाद खेत को समान (Leveling) करना जरूरी है।
  • खेत में ऊँच-नीच नहीं होनी चाहिए वरना कहीं पर पानी भर जाएगा और कहीं सूखा पड़ जाएगा।
  • लेवलिंग से सिंचाई समान रूप से हो पाती है और फसल की बढ़वार भी समान होती है।

1.5 जैविक खाद का प्रयोग

  • लौकी की खेती में जैविक खाद का उपयोग करना बहुत लाभकारी है।
  • प्रति एकड़ खेत में 8–10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए।
  • इसके अलावा किसान वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, पानी धारण करने की क्षमता बढ़ाती है और पौधों को धीरे-धीरे पोषण देती है।

1.6 नमी प्रबंधन

  • लौकी की खेती में मिट्टी की नमी संतुलित रहना बहुत जरूरी है।
  • बहुत ज्यादा नमी होने पर पौधों में जड़ गलन और फफूंदी रोग हो सकता है।
  • बहुत कम नमी होने पर पौधों की जड़ें सूख जाती हैं और फल छोटे रह जाते हैं।
  • इसलिए खेत की तैयारी के समय नाली और मेड़ ऐसी बनानी चाहिए कि जरूरत के अनुसार पानी रुक सके और अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए।

1.7 क्यारियों का निर्माण

  • खेत में 2–3 मीटर चौड़ी क्यारियाँ बनानी चाहिए।
  • क्यारियों के बीच में नालियां (30–40 सेमी चौड़ी) रखें ताकि सिंचाई और जल निकासी आसान हो सके।
  • क्यारियों पर पौधों की बुवाई करने से जड़ें अच्छी तरह विकसित होती हैं और फल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
  • नालियों में पानी आसानी से आता-जाता है जिससे फसल को पानी की कमी या अधिकता से नुकसान नहीं होता।

👉 इस तरह खेत की सही तैयारी करने से हाइब्रिड लौकी की खेती में उत्पादन अधिक और लागत कम आती है।

2. बीज उपचार और चयन

लौकी की खेती में अच्छी पैदावार के लिए सबसे जरूरी है कि किसान सही किस्म का बीज चुनें और बुवाई से पहले उसका उचित उपचार करें। बीज की गुणवत्ता सीधा असर फसल की उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और फल की गुणवत्ता पर डालती है। इसलिए बुवाई से पहले बीज को अच्छे से तैयार करना और सुरक्षित रखना आवश्यक है।

2.1 उन्नत किस्म का चयन

  • लौकी की खेती के लिए किसानों को हमेशा उन्नत और उच्च उत्पादन वाली किस्में चुननी चाहिए।
  • हाइब्रिड किस्मों से उत्पादन अधिक मिलता है और फल का आकार भी आकर्षक होता है।
  • प्रमुख किस्में: पूसा संगरम, पूसा हाइब्रिड, अरका बहार, नरेंद्र लौकी, पूसा नवीन
  • सही किस्म का चयन स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार करना चाहिए।

2.2 रोगमुक्त बीज का चयन

  • किसान हमेशा स्वस्थ और रोगमुक्त बीज का ही प्रयोग करें।
  • बीज में किसी भी प्रकार के फफूंद, धब्बे या कीट का असर नहीं होना चाहिए।
  • रोगमुक्त बीज से पौधे मजबूत होते हैं और फसल में रोग फैलने की संभावना कम रहती है।
  • बीज लेने से पहले सरकारी कृषि केंद्र या मान्यता प्राप्त सीड कंपनी से ही बीज लें।

2.3 बीज शोधन

  • बीज शोधन का मतलब है बीज को रासायनिक दवाओं से उपचारित करना
  • बुवाई से पहले बीज को थायरम (2–3 ग्राम/किलो बीज) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें।
  • यह प्रक्रिया बीज को फफूंदी और अन्य रोगों से सुरक्षित रखती है।
  • बीज शोधन से पौधे की अंकुरण क्षमता (germination rate) भी बेहतर हो जाती है।

2.4 जैविक उपचार

  • जैविक खेती करने वाले किसान रासायनिक दवाओं की जगह जैविक विधि अपनाएं।
  • बीज को ट्राइकोडर्मा (4–5 ग्राम/किलो बीज) या जीवाणु खाद (Azotobacter, PSB) से उपचारित किया जा सकता है।
  • नीम की गिरी (Neem Cake) का घोल बनाकर भी बीज को भिगोया जा सकता है।
  • जैविक उपचार से बीज सुरक्षित रहते हैं और मिट्टी की उर्वरता पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता।

2.5 भंडारण से पूर्व निरीक्षण

  • बुवाई के लिए बीज को हमेशा सूखी और ठंडी जगह पर रखें।
  • भंडारण से पहले बीज को धूप में सुखाकर उसकी नमी 8–10% से ज्यादा नहीं रहने दें।
  • बीज को कपड़े या जूट की थैली में रखें, प्लास्टिक की थैली में न रखें क्योंकि उसमें फफूंद लगने का खतरा रहता है।
  • भंडारण करते समय बीज को नीम की पत्ती या राख के साथ रख सकते हैं ताकि कीटों से बचाव हो सके।
  • अगली फसल के लिए रखे गए बीज को समय-समय पर निरीक्षण करना जरूरी है।

👉 इस तरह बीज का सही चयन और उचित उपचार करने से किसान को अधिक पैदावार, स्वस्थ पौधे और बेहतर गुणवत्ता वाली लौकी प्राप्त होती है।

3. रोपण: बुवाई का सही समय व तरीका

लौकी की अच्छी पैदावार के लिए सही समय पर बुवाई और सही विधि का चुनाव करना बहुत जरूरी है। यदि किसान मौसम और बीज की मात्रा का ध्यान नहीं रखते तो उत्पादन में काफी कमी हो सकती है। आइए जानते हैं बुवाई से जुड़ी मुख्य बातें।

3.1 बुवाई का सही मौसम

  • लौकी की बुवाई साल में तीन बार की जा सकती है।
  • गर्मी की फसल – फरवरी से मार्च के बीच बुवाई करें।
  • बरसात की फसल – जून से जुलाई में बुवाई उपयुक्त रहती है।
  • सर्दियों की फसल – अक्टूबर के आसपास बुवाई की जाती है, लेकिन ठंड अधिक होने वाले क्षेत्रों में यह सफल नहीं होती।
  • समय से बुवाई करने पर पौधों का अंकुरण अच्छा होता है और फूल व फल बनने की प्रक्रिया संतुलित रहती है।

3.2 बीज की मात्रा

  • लौकी की खेती में प्रति एकड़ लगभग 1.5 से 2 किलो बीज पर्याप्त होता है।
  • यदि मिट्टी की उर्वरता कम हो या बीज की अंकुरण क्षमता कम हो तो मात्रा थोड़ी बढ़ाई जा सकती है।
  • हाइब्रिड किस्मों में बीज की मात्रा अपेक्षाकृत कम लगती है क्योंकि उनमें अंकुरण दर अधिक होती है।

3.3 बुवाई की गहराई

  • बीज को बहुत गहराई में या बहुत सतही स्तर पर नहीं बोना चाहिए।
  • बुवाई की आदर्श गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर होती है।
  • अधिक गहराई पर बुवाई करने से बीज सड़ सकते हैं और कम गहराई पर बोने से पक्षियों या कीटों द्वारा बीज नष्ट हो सकते हैं।

3.4 पौधों के बीच दूरी

  • पौधों के बीच उचित दूरी रखना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें पर्याप्त धूप, हवा और पोषण मिल सके।
  • पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2.0 से 2.5 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 से 2.0 मीटर रखनी चाहिए।
  • दूरी का ध्यान रखने से पौधों में रोग फैलने की संभावना कम रहती है और उत्पादन भी अधिक मिलता है।

3.5 मेड़-नाली या क्यारी विधि

  • लौकी की बुवाई के लिए किसान मेड़-नाली या क्यारी विधि दोनों अपना सकते हैं।
  • मेड़-नाली विधि – इसमें खेत में लंबी-लंबी नालियां बनाई जाती हैं और मेड़ों पर बीज बोए जाते हैं। इससे सिंचाई और जल निकासी आसानी से हो जाती है।
  • क्यारी विधि – इसमें 2–3 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाई जाती हैं और उनके किनारों पर पौधे लगाए जाते हैं।
  • इन विधियों से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और सिंचाई व खाद देना आसान रहता है।

👉 इस प्रकार यदि किसान सही समय पर, सही मात्रा और उचित विधि से लौकी की बुवाई करते हैं तो उन्हें अच्छी अंकुरण दर, स्वस्थ पौधे और उच्च उत्पादन प्राप्त होता है।

4. सिंचाई: कितनी बार और कैसे करें?

लौकी की खेती में सिंचाई का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है। सही समय पर पानी देने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और अच्छी पैदावार मिलती है। यदि सिंचाई की कमी या अधिकता हो जाए तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों प्रभावित होते हैं।

4.1 प्रारंभिक सिंचाई

  • लौकी के बीज बोने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
  • इससे बीज अंकुरित होने के लिए आवश्यक नमी प्राप्त करते हैं।
  • अंकुरण की अवस्था में मिट्टी में लगातार हल्की नमी बनी रहनी चाहिए, लेकिन पानी का जमाव नहीं होना चाहिए।

4.2 सिंचाई का समय अंतराल

  • गर्मियों में लौकी की फसल को हर 7 से 10 दिन में सिंचाई करनी आवश्यक है।
  • सर्दियों में सिंचाई का अंतराल 12 से 15 दिन तक रखा जा सकता है।
  • बरसात में प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर रहना पर्याप्त है, लेकिन अतिरिक्त पानी खेत से निकालना जरूरी है।

4.3 मौसम के अनुसार समायोजन

  • गर्म मौसम में पौधों को अधिक नमी की जरूरत होती है, इसलिए सिंचाई बार-बार करनी पड़ती है।
  • ठंड के मौसम में पौधे की वृद्धि धीमी होती है, इस कारण सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।
  • बरसात के मौसम में जलभराव से बचने के लिए खेत में नालियां और उचित जल निकासी व्यवस्था होना आवश्यक है।

4.4 ड्रिप या फव्वारा विधि

  • आधुनिक सिंचाई प्रणालियों में ड्रिप (टपक) सिंचाई सबसे उपयोगी है।
  • ड्रिप से पानी सीधा पौधे की जड़ों तक पहुँचता है और पानी की बचत होती है।
  • फव्वारा (Sprinkler) विधि का उपयोग भी किया जा सकता है, जिससे खेत में नमी समान रूप से बनी रहती है।
  • ड्रिप सिंचाई का एक और लाभ यह है कि इसके माध्यम से घुलनशील उर्वरक (Fertigation) भी दिया जा सकता है।

4.5 अधिक या कम सिंचाई से नुकसान

  • यदि खेत में अधिक पानी भर जाए तो पौधों में जड़ सड़न (Root Rot) और फफूंद रोग लग सकते हैं।
  • लगातार अधिक नमी रहने से पौधों की बढ़वार धीमी हो जाती है और फलन पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  • दूसरी ओर, कम सिंचाई से मिट्टी सूख जाती है जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और फल छोटे व कम गुणवत्ता वाले निकलते हैं।
  • इसलिए किसान को चाहिए कि मौसम और मिट्टी की स्थिति को ध्यान में रखकर संतुलित सिंचाई करें।

👉 सही सिंचाई प्रबंधन से किसान लौकी की खेती में न केवल अच्छी पैदावार ले सकते हैं, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ा सकते हैं।

5. उर्वरक प्रबंधन

लौकी की खेती में उचित उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक है। सही मात्रा और समय पर उर्वरक देने से पौधे की बढ़वार अच्छी होती है और फल ज्यादा तथा गुणवत्तापूर्ण मिलते हैं। यदि उर्वरकों का सही संतुलन न रखा जाए तो उत्पादन घट सकता है और पौधों में रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

5.1 बेसल डोज

  • खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर लगभग 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।
  • इसके साथ ही शुरुआती अवस्था में फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बेसल डोज के रूप में डालनी चाहिए।
  • इससे पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं और शुरुआती वृद्धि बेहतर होती है।

5.2 नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश का अनुपात

  • लौकी की फसल के लिए सामान्यत: नाइट्रोजन 80-100 किग्रा, फॉस्फोरस 40-50 किग्रा और पोटाश 60-70 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त माना जाता है।
  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा बेसल डोज में और शेष आधी मात्रा दो बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
  • फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा शुरुआती अवस्था में डालना उपयुक्त होता है क्योंकि यह तत्व पौधों की जड़ों के विकास और फलन में मदद करते हैं।

5.3 जैविक खाद का प्रयोग

  • जैविक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, और गोबर की खाद मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए बहुत लाभकारी होती हैं।
  • इन खादों से मिट्टी की जल धारण क्षमता और सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ती है।
  • जैविक खाद का प्रयोग रासायनिक उर्वरकों के साथ करने से पौधों को संतुलित पोषण मिलता है और उत्पादन भी अच्छा होता है।

5.4 फसल अवस्था अनुसार पोषण

  • अंकुरण और शुरुआती अवस्था में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की जरूरत अधिक होती है।
  • पौधों के फूल आने और फल बनने की अवस्था में नाइट्रोजन की आपूर्ति धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए
  • फल विकास के समय पोटाश की पर्याप्त मात्रा देने से फल बड़े, चमकदार और लंबे समय तक टिकने वाले होते हैं।
  • आवश्यकता पड़ने पर फसल पर फोलियर स्प्रे (पत्तियों पर छिड़काव) भी किया जा सकता है।

5.5 सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति

  • लौकी की अच्छी पैदावार के लिए केवल मुख्य तत्व ही नहीं बल्कि जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज और बोरॉन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी जरूरी होते हैं।
  • इनकी कमी से पौधों में पत्तियां पीली पड़ना, फूल झड़ना और फलन कम होना जैसी समस्याएं आ सकती हैं।
  • इनकी पूर्ति के लिए समय-समय पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का फोलियर स्प्रे करना चाहिए।

👉 इस तरह संतुलित उर्वरक प्रबंधन अपनाने से किसान न केवल अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं बल्कि फलों की गुणवत्ता भी बेहतर कर सकते हैं।

6. कीट और रोग नियंत्रण

6.1 सामान्य कीट पहचान

लौकी की खेती में फल मक्खी, तना छेदक, पत्ती खाने वाले कीट और लाल मकड़ी जैसे कीट सामान्य रूप से पाए जाते हैं। इनकी पहचान समय पर करना बहुत ज़रूरी है। फल मक्खी फल में छेद करके अंडे देती है जिससे फल सड़ने लगता है। तना छेदक पौधों की बढ़वार रोक देता है। पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद या पीला पड़ना कीटों की उपस्थिति का संकेत है। नियमित रूप से पौधों का निरीक्षण करने से समय पर नियंत्रण संभव होता है।

6.2 जैविक कीटनाशकों का उपयोग

कीट नियंत्रण के लिए नीम आधारित घोल (नीम तेल या नीम की खली) का छिड़काव प्रभावी माना जाता है। लहसुन-हरी मिर्च का घोल या गौमूत्र आधारित जैविक कीटनाशक भी पत्तियों पर छिड़कने से कीटों को नियंत्रित करते हैं। इस तरह के जैविक उपाय पौधों को नुकसान नहीं पहुँचाते और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।

6.3 रासायनिक नियंत्रण

जब कीटों का प्रकोप बहुत अधिक हो जाता है, तो रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है। फल मक्खी नियंत्रण के लिए आकर्षक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। तना छेदक पर नियंत्रण पाने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रहे कि रसायनों का प्रयोग संतुलित मात्रा में और विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए ताकि पर्यावरण और फसल दोनों सुरक्षित रहें।

6.4 रोग प्रतिरोधक उपाय

लौकी में फफूंद जनित रोग जैसे पाउडरी मिल्ड्यू और डाउनी मिल्ड्यू आमतौर पर देखे जाते हैं। इनसे बचाव के लिए रोगमुक्त बीज का प्रयोग करना चाहिए। खेत में उचित वायु संचार और जल निकासी की व्यवस्था बनाए रखना ज़रूरी है। रोग लगने की स्थिति में जैविक या रासायनिक फफूंदनाशी का छिड़काव किया जा सकता है।

6.5 फसल निरीक्षण

फसल की नियमित निगरानी करना कीट और रोग नियंत्रण का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है। हर 7-10 दिन में पौधों की पत्तियों, तनों और फलों का निरीक्षण करना चाहिए। शुरुआती अवस्था में समस्या पहचानने से कम खर्च में उसका समाधान किया जा सकता है। साथ ही, खेत की स्वच्छता बनाए रखने और प्रभावित पौधों को समय पर हटाने से भी कीट और रोगों का फैलाव रोका जा सकता है।

7. खरपतवार नियंत्रण

7.1 प्रारंभिक नियंत्रण

लौकी की खेती में खरपतवार शुरुआत से ही नियंत्रण में रखना जरूरी है, क्योंकि यह पौधों से पोषक तत्व, पानी और धूप छीन लेते हैं। बीज बुवाई से पहले खेत की जुताई करके और खेत को समतल बनाकर खरपतवार की शुरुआती बढ़वार रोकी जा सकती है। यदि संभव हो तो बुवाई से पहले खेत में हल्की सिंचाई कर खरपतवार अंकुरित कर लें और फिर जुताई करके उन्हें नष्ट कर दें।

7.2 हाथ से निराई

खरपतवार नियंत्रण का सबसे आसान और पारंपरिक तरीका हाथ से निराई है। पौधे छोटे होने पर पंक्तियों के बीच और पौधों के पास उग आए खरपतवारों को हाथ से निकालना चाहिए। इससे मिट्टी भी हल्की हो जाती है और पौधों की जड़ों तक हवा और पानी आसानी से पहुँचता है। हाथ से निराई लागत भले थोड़ी अधिक हो लेकिन यह पर्यावरण और फसल दोनों के लिए सुरक्षित है।

7.3 कुदाल से निराई

कुदाल या खुरपी से खरपतवार निकालना भी एक प्रभावी तरीका है। इससे मिट्टी की जड़ों में हल्की गुड़ाई हो जाती है और पौधों की बढ़वार तेज होती है। कुदाल से निराई पंक्तियों के बीच और पौधों के आसपास आसानी से की जा सकती है। यह तरीका खासकर तब उपयोगी है जब खरपतवार ज्यादा घने हो जाते हैं और हाथ से निकालना मुश्किल हो जाता है।

7.4 खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग

जहाँ मजदूरों की कमी हो या बड़े खेत हों, वहाँ खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। बुवाई से पहले या पौधों के छोटे होने पर चयनित खरपतवारनाशी दवाओं का छिड़काव करने से खरपतवारों की बढ़वार रुक जाती है। दवा का चुनाव फसल और खरपतवार की किस्म के अनुसार करना चाहिए। ध्यान रहे कि दवा का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह और अनुशंसित मात्रा में ही किया जाए ताकि फसल को नुकसान न पहुँचे।

7.5 समयबद्ध नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू समयबद्धता है। बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई और फिर हर 15-20 दिन के अंतराल पर निराई करनी चाहिए। फसल के शुरुआती 40-50 दिन खरपतवार नियंत्रण के लिए सबसे संवेदनशील माने जाते हैं। यदि इस समय पर खरपतवार को हटा दिया जाए तो फसल स्वस्थ रहती है और अच्छी उपज मिलती है।

8. कटाई और भंडारण

8.1 कटाई का सही समय

लौकी की अच्छी गुणवत्ता और अधिक उपज पाने के लिए कटाई का सही समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। लौकी की कटाई तब करनी चाहिए जब फल कोमल, चमकदार और हरे रंग का हो। यदि फल अधिक समय तक पौधे पर रह जाए तो वह सख्त हो जाता है और खाने योग्य नहीं रहता। सामान्यतः बुवाई के 60–70 दिन बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

8.2 खुदाई की विधि

कटाई के लिए तेज चाकू या कैंची का प्रयोग करना चाहिए। फल को पौधे से थोड़ा डंठल सहित काटना बेहतर होता है ताकि फल जल्दी खराब न हो। कटाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पौधे की बेल और अन्य फल को नुकसान न पहुँचे। सुबह या शाम के समय कटाई करना उत्तम रहता है क्योंकि इस समय तापमान कम होता है और फल लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं।

8.3 धुलाई और सफाई

कटाई के बाद लौकी के फलों को साफ पानी से धोना चाहिए ताकि उन पर लगी मिट्टी, धूल और कीटाणु हट जाएं। धुलाई के बाद फलों को छांव में सुखाना जरूरी है ताकि उन पर नमी न रहे। साफ-सफाई का ध्यान रखने से भंडारण के दौरान सड़न और संक्रमण की संभावना कम हो जाती है।

8.4 सुखाने की प्रक्रिया

धुलाई के बाद फलों को छांव में प्राकृतिक हवा से सुखाना सबसे उपयुक्त तरीका है। तेज धूप में सुखाने से फल की सतह मुरझा जाती है और उसकी चमक कम हो जाती है। सुखाने की प्रक्रिया पूरी होने तक फलों को एक परत में फैलाकर रखना चाहिए ताकि सभी तरफ से हवा मिल सके।

8.5 भंडारण की विधि

भंडारण के लिए फलों को ठंडी और हवादार जगह पर रखना चाहिए। लकड़ी या प्लास्टिक के बक्सों में पुआल या अखबार बिछाकर फल रखने से वे लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं। बड़े पैमाने पर भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज का उपयोग किया जा सकता है जहाँ 10–12 दिन तक फसल सुरक्षित रहती है। भंडारण करते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि खराब या सड़े हुए फल अलग कर दिए जाएँ ताकि वे बाकी फलों को प्रभावित न करें।

9. लौकी की खेती में लाभ और लागत

9.1 प्रति एकड़ लागत

खर्च का प्रकारअनुमानित लागत (रु.)विवरण
बीज2,000 – 3,000उन्नत किस्म के बीज की खरीद
भूमि तैयारी4,000 – 5,000जुताई, खेत समतल करना और मेड़-नाली बनाना
खाद एवं उर्वरक6,000 – 8,000गोबर की खाद, डीएपी, यूरिया, पोटाश आदि
सिंचाई3,000 – 4,000डीजल/बिजली और श्रम खर्च
श्रम लागत8,000 – 10,000बुवाई, निराई-गुड़ाई, कटाई व परिवहन
अन्य खर्च2,000 – 3,000दवाई, उपकरण और रख-रखाव
कुल लागत25,000 – 33,000प्रति एकड़ कुल खर्च

9.2 प्रति एकड़ उत्पादन

उत्पादन क्षमताअनुमानित मात्राविवरण
औसत उत्पादन80 – 100 क्विंटलअच्छी देखभाल व उन्नत किस्म पर आधारित
अधिकतम उत्पादन120 क्विंटल तकसिंचाई, खाद और प्रबंधन पर निर्भर

9.3 बाजार मूल्य

बाजार स्थितिऔसत मूल्य (रु. प्रति क्विंटल)विशेष जानकारी
न्यूनतम1,200 – 1,500स्थानीय मंडी में सामान्य दर
औसत1,800 – 2,000सीजन के दौरान स्थिर मूल्य
अधिकतम2,500 – 3,000ऑफ-सीजन या मांग अधिक होने पर

9.4 शुद्ध लाभ

विवरणअनुमानित राशि (रु.)
कुल आय (औसत उत्पादन × औसत मूल्य)1,60,000 – 2,00,000
कुल लागत25,000 – 33,000
शुद्ध लाभ1,25,000 – 1,70,000

9.5 लाभ बढ़ाने के उपाय

उपायविवरण
उन्नत बीज का प्रयोगउच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्में चुनना
जैविक खाद और कीटनाशकमिट्टी की उर्वरता बनाए रखना और रोग कम करना
समय पर सिंचाई और निराईफसल का स्वास्थ्य और उपज बढ़ाना
बाजार की जानकारीसही समय पर सही स्थान पर फसल बेचना
अंतरवर्तीय खेतीलौकी के साथ अन्य फसलें लगाकर अतिरिक्त लाभ लेना

10. लौकी की खेती से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQ)

10.1 लौकी की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम कौन सा है?

लौकी की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में सबसे अच्छी होती है। इसे खरीफ और ग्रीष्म दोनों मौसम में उगाया जा सकता है। फरवरी-मार्च और जून-जुलाई में इसकी बुवाई करने से अच्छी पैदावार मिलती है।

10.2 लौकी की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है?

लौकी की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए और खेत में पानी निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

10.3 एक एकड़ में लौकी की बुवाई के लिए कितने बीज की आवश्यकता होती है?

एक एकड़ भूमि में लौकी की खेती के लिए लगभग 2.5 से 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि बीज उच्च गुणवत्ता के हों तो उपज और भी अधिक मिल सकती है।

10.4 लौकी की फसल में कितनी बार सिंचाई करनी चाहिए?

लौकी की फसल को 7 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। गर्मियों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि बरसात के मौसम में पानी का जमाव रोकना अधिक जरूरी होता है।

10.5 लौकी की फसल में कौन-कौन से प्रमुख कीट और रोग लगते हैं?

लौकी में फली मक्खी, फल छेदक कीट और पत्ती मोड़क कीट प्रमुख होते हैं। रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू और मोज़ेक वायरस आम हैं। इनसे बचाव के लिए उचित दवाओं का छिड़काव और जैविक उपाय किए जा सकते हैं।

10.6 एक एकड़ में लौकी की औसत पैदावार कितनी होती है?

अच्छी देखभाल और उन्नत किस्मों के प्रयोग से एक एकड़ में औसतन 80 से 100 क्विंटल लौकी की उपज प्राप्त की जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में यह उत्पादन 120 क्विंटल तक भी पहुंच सकता है।

10.7 लौकी की खेती में प्रति एकड़ लागत कितनी आती है?

लौकी की खेती में प्रति एकड़ 25,000 से 33,000 रुपये तक का खर्च आता है। इसमें बीज, खाद, श्रम, दवा और सिंचाई आदि की लागत शामिल होती है।

10.8 लौकी की खेती से प्रति एकड़ शुद्ध लाभ कितना होता है?

यदि औसत उत्पादन 90 क्विंटल और औसत बाजार भाव 1,800 रुपये प्रति क्विंटल माना जाए तो कुल आय लगभग 1.60 लाख रुपये होती है। लागत निकालने के बाद शुद्ध लाभ 1.25 से 1.70 लाख रुपये प्रति एकड़ तक मिलता है।

10.9 लौकी की कटाई का सही समय कब होता है?

लौकी की कटाई तब करनी चाहिए जब फल हरे, मुलायम और मध्यम आकार के हों। अधिक पकने पर फल का स्वाद और बाजार मूल्य दोनों घट जाते हैं। औसतन बुवाई के 55 से 65 दिन बाद कटाई शुरू हो जाती है।

10.10 लौकी की फसल का भंडारण कैसे किया जाता है?

कटाई के बाद लौकी को पहले अच्छी तरह धोकर छाया में सुखाना चाहिए। फिर इन्हें ठंडी और हवादार जगह पर बांस या लकड़ी की टोकरियों में रखकर संग्रहित किया जा सकता है। उचित भंडारण से 8–10 दिन तक लौकी ताजी बनी रहती है।